माँ के लिए साड़ी -वो भी प्योर सिल्क

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लता की ज़िन्दगी पहले ऐसी ना थी | शादी के बाद लता के क्या ठाट-बाट थे ! उसका पति उससे 2 कदम आगे | हर कपड़ा-लत्ता ऊपर से नीचे तक मैचिंग होता | सर पर चश्मा, पैरो में चमचमाते बूट,परफ्यूम की खूशबू से महकता शरीर और चहेरे पर अलग ही तेज |

और उसके पति की रौनक लता के हाव-भाव में भी साफ़ झलकती थी | शादी के 12 साल बीतने के बाद भी जो कोई इस जोड़े को देखता बस यही कहता “नया नवेला जोड़ा ” है ये तो | ऐशो आराम में शादी के तकरीबन 14 साल बीते लेकिन धीरे-धीरे किस्मत के रंगो ने फीका होना शुरू कर दिया |

लता के पति को लास्ट स्टेज कैंसर बताया गया | अब लता के कमरे में सिर्फ दवाओं की दुर्गन्ध और पति के शरीर में भी ये दुर्गन्ध रम गयी थी जिसे दुनिया का कोई इत्र नहीं हटा सकता था | पैसा, ऐशो आराम, मांग का सिन्दूर सब ज़िन्दगी से चला गया |

लेकिन धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा था कि ज़िन्दगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आने लगी थी | बेटा बड़ा हो गया था | बेटे ने MBA कर ली और पहली ही जॉब दिल्ली की बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में लग गयी | लता सोच कर बैठी थी – यहाँ रेवाड़ी में मेरा है ही कौन ? एक गठरी में समां जाएगी मेरी ज़िन्दगी तो | एक बार बोले, बिना कुछ सोचे उसके साथ चल पडूँगी ! जॉब लगते ही साहिल ने कहा “मम्मी अभी तो मैं ही सेट नहीं हुआ, आपको कैसे लेके जाऊ ? थोड़ा टाइम रुको |

पैसे की इतनी कमी हो गयी की घर चलाने के लिए कुछ तो करना था | तो बचपन में सीखी सिलाई और रफ़ूगीरी को काम में लाने लगी |

घर में ही सिलाई-मशीन रखकर, पास के व्यापारियों से संपर्क किया | इस तरह सिलाई के साथ-साथ, टुके हुए नए कपड़ो पर रफ़ूगीरी का काम शुरू कर दिया | घंटो-घंटो उसी सिलाई मशीन पर बैठे लता की कमर अकड़ जाती लेकिन चलती हुई मशीन पर लगी ऊपर नीचे होती सुई उसे मानो उसकी ज़िंदगी की साँसों जैसी लगने लगी थी कि जब तक ये चलेगी, मेरी ज़िन्दगी भी चलती जाएगी | ज़िंदगी की चादर इतनी कमजोर हो रही थी कि फटती चली जा रही थी और उस पर रफू करती चली गयी |

मेट्रोपोलिटन मॉल के सामने एक कार आकर रुकी | दोनों एक दूसरे से चुटकी लेते हुए कार से बाहर आये | मॉल इतना बड़ा और आलिशान था कि दोनों की ही आँखे चकाचौंध से झिलमिला उठी थी |

ये कहाँ ले आयी तुम मुझे ? साहिल ने राम्या को अपनी कार की चाभी का छल्ला घुमाते हुए कहा |

अरे यही की तो बात की थी मैंने ! लग ही नहीं रहा ये इंडिया है | राम्या ने साहिल को एक बड़े से शोरूम में ले जाते हुए कहा |

मम्मा के लिए तो साड़ी ले ली | क्यों ना निशा के लिए भी कोई ड्रेस ले लू ? अपनी साली का नाम आते ही साहिल के चेहरे की मुस्कान 2 गज लम्बी हो गयी |

आज तो लगता है तुम मेरे जादुई चिराग पर खरोंचे लगवा के ही मानोगी | साहिल ने क्रेडिट कार्ड निकालते हुए कहा |

अब मम्मा और निशा के लिए शनिबाज़ार से थोड़े ही कपड़े लुंगी | एंड डॉन वरि इस जादुई चिराग पर लगी खरोचों को बचत की रफू से ठीक कर दूंगी | तुम तो जानते हो मैंने डिस्काउंट लेने में डिग्री ली हुई है – राम्या खिलखिलाकर हॅसने लगी |

दोनों ढ़ेर सारे शॉपिंग बैग्स उठाये हुए आइस टी का मज़ा लेते हुए एस्कलेटर से नीचे आने लगे कि अचानक साहिल को अपनी माँ का ख़्याल आया |

दिवाली पर माँ के लिए भी तो कोई साड़ी लेनी थी |

अरे, तो टेंशन किस बात की है | मैं एक बहुत अच्छी शॉप जानती हूँ जहां बढ़िया से बढ़िया साड़ी किफायती दामों में मिलती है |

कार 80 की रफ़्तार से रेवाड़ी की और रवाना हो रही थी कि राम्या ने एक साड़ी की छोटी सी दूकान पर रुकने का इशारा किया |

तुम्हे लगता है यहाँ मिल जाएगी बढ़िया साड़ी ?

तुम चलो तो सही | भैया एक प्योर सिल्क में साड़ी दिखाना | रंग तो खूबसूरत है, कितने की है ?

सिर्फ 5000 की मैडम !

भैया थोड़ा कम रेंज की दिखाओ !

नहीं मैडम इससे कम रेंज में प्योर सिल्क का सवाल ही पैदा नहीं होता | वैसे ये साड़ी किसके लिए ले रहो हो मैडम | अगर बुरा ना माने तो एक बढ़िया सुझाव है |

ये देखिये, वैसे तो ये साड़ियां भी इसी रेंज की है लेकिन लोडिंग-अनलोडिंग या फिर किसी और वजह से इनमे छोटे-छोटे छेद हो जाए या फिर कही से टुक जाएं तो हम इसको रफू करवा कर 700 तक में सेल कर देते है | रफू भी ऐसा है कि कोई लेंस लगाकर भी देखे तब भी पता ना चले कि कोई प्रॉब्लम है |

मम्मी ये तुम्हारे लिए साड़ी, प्योर सिल्क की | मुझे तो पता ही नहीं साड़ियों के बारे में | राम्या ने कहा -मम्मी के लिए कुछ लेना है तो प्योर सिल्क की साड़ी | फिर दिल्ली के सबसे बड़े मॉल में ले गयी मुझे !

अरे, इसकी क्या जरुरत थी ? लता की आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे | उसे लगा जैसे उसकी इतने बरसो की तपस्या सफल हो गयी |

जैसे ही उसने साड़ी पर नज़र मारी – मन में ख़याल आया -ये क्या वही हूँ-बहु फूलों और मोर पंख के डिज़ाइन की साड़ी | उसने तेजी से अपनी आँखे साड़ी के छोर की ओर घुमाई | छोटा नीला त्रिकोण -उसका पहचान का लोगो | जो वो हर रफू की गयी साड़ी पर लगाती थी |

उसकी आँखे एक बार-बार फिर छलछला गयी | उसकी कमजोर ज़िन्दगी की चादर पर साहिल की लायी साड़ी ने कैंची का काम किया कि ज़िन्दगी सरर्र करके फट गयी और इस बार रफू भी काम ना आया |

चित्र स्त्रोत-sara Dukerton, daily mail, BBc.com, the culture trip,hamaraevent.com

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