मरने के बाद इस दुनिया में रह न पाया मैं

Poems


इतनी गहरी नींद थी वो
कि फिर न उठ पाया मैं


इतना अनजान पड़ा था
कि माँ की सिसकिया भी सुन न पाया मैं


सबने प्यार से मुझे नहलाया
कितना सजा-सजाया मैं


न जाने कौन सा खेल था वो
कन्धों पर सबके उठाया गया मैं


बड़ा ही अजीब सा माहौल था
रो-रो, चिल्ला-चिल्ला जगाया गया मैं


जीते-जी भी जिद्दी था
मरने के बाद भी जिद्द न छोड़ पाया मैं


माँ तो कहती थी फूलों से हो ज़िन्दगी तेरी
उसी के सामने चुभती लकड़ियों पर लिटाया गया मैं


बहन ने राखी का वास्ता भी दिया
पर उसकी गुजारिश भी सुन न पाया मैं


भाई रो-रो कर बेहोश हो गया
बेशर्मी से लेटा हुआ उसे भी उठा न पाया मैं


पापा के मुँह से आवाज़ तो नहीं आयी
पर उनके आंसू रोक न पाया मैं


मेरी रूह तो उस वक़्त काँप उठी थी
जब हमेशा के लिए सुलाया गया मैं


जो कहते थे जान हाज़िर है तेरे लिए
उन्ही के हाथों जलाया गया मैं


जो लोग मेरी बुराई करने से न चूकते थे
आज उनकी आँखों में भी अच्छा आदमी हो गया मैं


कुछ लोगों को तो कहते सुना मैंने “और कितना वक़्त लगेगा”
तब लगा कितना हो गया पराया मैं


उस दिन तो सब आस-पास थे मेरे
पर सालों बाद कई दिलों से भुलाया गया मैं


आज भी याद करते है मेरे अपने मुझे
शुक्र है अपनों के दिलों से नामोनिशान मिटा न पाया मैं


ज़िन्दगी के सफर में तो सब साथ थे मेरे
मरने के बाद किसी का हमराही बन न पाया मैं

चित्र स्त्रोत – Spiritual ray

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