कोई अपना ज़िन्दगी की लड़ाई हार गया

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श्रीवास्तव जी – क्या बात है सुनील जी, एक्सरसाइज और वॉक पर बहुत ज़ोर है, पतले होने की तैयारी है क्या ?

सुनील जी – (हँसते हुए ) नहीं, ऐसा कुछ नहीं, सबको फिट तो रहना ही चाहिए |

श्रीवास्तव जी- और फैक्ट्री कैसी चल रही हैं, बेटे ने काम संभाला साथ में |

सुनील जी- सब बढ़िया ! अभी उन छोटे से कंधो पर बड़ा सा बोझ रखने का टाइम नहीं आया |

श्रीवास्तव जी – हां ये तो हैं, बच्चे कितने ही बड़े हो जाए माँ-बाप के लिए तो वो बच्चे ही रहते हैं |

मेरे सुनील अंकल का अलीगढ़ में एक संपन्न और संपूर्ण परिवार था जिसमे एक लायक बेटा, बहु, पत्नी और प्यारी सी एक बेटी थी | धर्म और पूजा-पाठ में इतना ध्यान, अपने परिवारवालों की इतनी फ़िक्र,मेहनती, शराब-सिगरेट से कोसो दूर, अंकल इतने दयालु थे कि किसी का दर्द नहीं देख सकते थे | वो कहते हैं ना एक परफेक्ट इंसान |

हर हफ्ते नहीं तो महीने में कम से कम 2 बार वृन्दावन जरूर जाना | यहाँ तक कि मेरे बच्चे उन्हें “राधे-राधे” अंकल कह कर बुलाते थे | नहा-धोकर रोज सुबह 2 रोटी गाय की,एक पूरी ब्रेड कुत्तों के लिए, पूरा 1 घंटे सभी साजो-सामान के साथ भगवान को समर्पित करना | सुबह-सुबह तो उनका पूरा घर अगरबत्तियों से महकता था |

उसके बाद पूरी फैक्ट्री का काम संभालना और घरवालों के लिए समोसे या कचौड़ी लेकर घर वापिस लौटना |

अच्छा पैसा होने के बावजूद, बहुत साधारण ज़िन्दगी जीते थे वो | थोड़ा पेट कम करने के लिए एक्सरसाइज और थोड़ी बोत डाइटिंग भी उनकी दिनचर्या में शामिल हो गयी | कुछ समय बीतने के बाद लोग भी उन्हें सराहने लगे कि सुनील जी आपका तो वजन कम हो रहा है, बहुत अच्छी बात हैं और वो सोचने लगे कि चलो अपने शरीर पर निवेश करना कभी घाटे का सौदा नहीं हो सकता और वो जोरो-शोरो से अपने आप शरीर को समय देने लग गए | लेकिन कुछ दिनों बाद घरवालों को महसूस किया कि उनका वजन कुछ ज्यादा ही घट रहा हैं और ये कहु कि दिन-प्रतिदिन ढल से रहे थे | अंकल को बोला कि डॉक्टर को दिखा लेते हैं तो वो कहते अरे, कुछ नहीं हैं, फिट हो रहा हूँ मैं !

जब एक दिन अचानक इतना वजन कम होने की बात होने महसूस हुई तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाना ही सही समझा |

और वो हो गया जो शायद किसी ने ना सोचा था… उनको लीवर सिरोसिस -लिवर का कैंसर था | छोटी जगह होने की वजह से एक-दूसरे को जानना एक आम बात थी और अंकल तो मैटल के एक जाने-माने बड़े व्यापारी थे | डॉक्टर ने तो यहाँ तक कहा कि मैं तो इस बात पर हैरान हूँ कि जो इंसान शराब और सिगरेट पीने वालों के पास तक नहीं फटकता उसे ये बिमारी कैसे हो सकती हैं ?

दिल्ली अपोलो हॉस्पिटल में उनके सारे टेस्ट हुए ताकि ये पता चल सकें कि ये कितना गंभीर हैं | जब पूरी फैमिली दिल्ली आ रही थी तो उन्हें ये अंदेशा भी नहीं था कि भगवान उनके घर के मुखिया को सिर्फ दो महीने जीने की मोहलत देने वाला हैं | अंकल को ये सब नहीं बताया गया | जब मैं पहली बार उन्हें देखने हॉस्पिटल पहुंची तो मैं पहचान नहीं पायी क्या ये वही प्यारे से मेरे गोलू-मोलू अंकल हैं |

बहुत दर्द भरा होता हैं वो समय जब आपको किसी अपने के साथ बैठ कर मौत का इंतज़ार करना होता हैं | ऐसा लगता हैं जैसे हर एक बीतता पल उस सैंड टाइमर की रेत जैसा हैं जिसे आप चाह कर भी पकड़ नहीं सकते |

किसी अपने की हर मुश्किल से आती सांस पर ये डर कि कही ये आंखरी सांस ना हो – बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे | और 10 अक्टूबर 2017 को घर सूना, मांग सूनी और कलाई सूनी हो गयी – सूनेपन की सही परिभाषा शायद उस दिन समझ आयी | वो नादान बेटा 2 महीनों में इतना बड़ा हो गया कि उसके सर पर पगड़ी बाँध दी गयी कि चल आज से तू हैं घर का बड़ा ! मेरी बुआ तो इतना बड़ा और गाड़ा सिन्दूर लगाती थी कि उस मनहूस दिन वो सिन्दूर हटाए भी नहीं हट रहा था | और उस लाड़ली बेटी का जैसे हर लाड़ अपने पापा के साथ खत्म हो गया |

छोटे में जब मेरे दादाजी हमे छोड़ कर इस दुनिया से चले गए तो मैं पूछती ऐसा क्यों हुआ ?मम्मी कहती भगवान को भी अच्छे लोगों की जरूरत होती हैं | मेरे अंकल भी इतनी अच्छे थे तो क्या अच्छे लोगों की इस दुनिया में जरुरत नहीं ?

 

 


चित्र स्त्रोत -daily mail

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