मेरी माँ को आज़ादी मिल गयी

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एक्चुअली रेनू का हाथ ज़रा अंग्रेजी में तंग था | कई बार इतनी फर्राटेदार इंग्लिश के जमाने में वो अपने आप को बहुत छोटा महसूस करती थी |

यहाँ तक कि उसका 8 साल का बेटा विशाल तक उसको कह देता -“मम्मी, आप को नहीं समझ आएगा, मैं अपने आप होमवर्क कर लूंगा ” | रेनू इंग्लिश में इतनी कमजोर थी कि अंग्रेजी के साधारण शब्दों से भी उसे घबराहट होने लगती थी

ऑन दा ऑस्पीशियस ओकेज़न ऑफ़ इंडिपेंडेंस डे, लेट्स ड्रेस आवर लिटिल हीरोज एज़ फ्रीडम फाइटर्स “- रेनू अटकते अटकते अपने बेटे कुशल की स्कूल डायरी में आया नोट पढ़ते हुए |

 

रेनू ने उत्सुकता से पूछा-कुशल इसका क्या मतलब है ?

कुशल -माँ सब बच्चों को सैनिक के कपड़े पहन के जाने है क्योंकि इंडिपेंडेंस डे है |

इंडिपेंडेंस डे ?? रेनू ने शब्दों को संभल संभल के बोला |

अरे मम्मी स्वतंत्रता दिवस जिस दिन हमें आजादी मिली थी -कुशल ने एक दम से जवाब दिया |

रेनू बिल्कुल बिंदास हो कर बोली – ओह स्वतंत्रता दिवस -लालकिले के पास है आज़ादी का मेला, सबसे ऊपर नाच रहा है झंडा एक अकेला (रेनू अभी पूरी कविता सुनाने वाली थी कि कुशल ने बीच में ही उसे रोक कर पूछा )

वाह माँ, आपको तो पता है, इस दिन हमें अंग्रेज़ो से आज़ादी मिली थी |

रेनू गर्व से आँखे मटकाती हुई बोली – बिल्कुल मुझे पता है |

कुशल ने बड़ी मासूमियत से पूछा -माँ, देश को तो आज़ादी मिल गयी लेकिन आपको कब मिलेगी पापा की डाँट और मार से |

रेनू की आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे | और उसने कुशल को डांट कर बोला- बहुत बड़ी बातें करता है तू | चल हाथ मुँह धो और खाना खा |

कुशल को तो रेनू ने भगा दिया लेकिन अपने छोटे से बच्चे की ग़हरी बात ने उसके दिल पर घाव कर दिया |

वो सोचने लगी जैसे हाथी जब छोटा होता है तो उसके पैरों में महावत ज़ंजीर डाल देता हैं और वो इसे अपनी नियति समझ लेता हैं | यहाँ तक कि बड़ा होने के बाद भी वो महावत के हुक्म को सर आँखों पर रखता हैं | उसी तरह मेरी शादी को 12 साल हो गए और पहले ही दिन से मेरी जगह मुझे दिखा दी गयी थी – पैरों की जूती | मायके में गरीबी और बेबसी के सिवा कुछ नहीं था, माँ बहुत पहले ही गुज़र चुकी थी और बाप की ज़िन्दगी पेंशन पर चलती थी इसलिए शुरू से ही गलत के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत ना रही |

रोज कुशल के पापा काम से घर आते और रोज गालियों और मार से रेनू की झोली भर देते | कुशल शायद यही देख कर बड़ा हो रहा था | किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया लेकिन ये सब देख, हर दम उस छोटे से बच्चे के सीने में अपनी माँ को इन ज़ुल्मो से आज़ादी दिलाने की ज्वाला भड़क रही थी |

 

उसने अपने पापा को सबक सीखने का तरीका ढूंढा |जब उसके पापा उसे और उसकी मम्मी को अपने दोस्त राहुल अंकल के यहाँ खाने पर ले गए | तो उसने राहुल अंकल की बेटी के साथ घर-घर खेलना शुरू कर दिया | सबकी नज़र इस पर पड़ी लेकिन बच्चों को खेल में मस्त देख सबने अपना ध्यान हटा लिया |

तभी कुशल ज़ोर से राहुल अंकल की बेटी को बोला – रेनू तुझसे खाना तक ठीक से नहीं बनता | जहा तेरी माँ हैं ना, वही तुझे भी पंहुचा दूंगा | और मारने के लिए हाथ उठाया |

ये सब देख सभी भौचक्के हो गए और सबसे ज्यादा पानी-पानी हो गए कुशल के पापा |

उस दिन एक छोटे से बच्चे ने अपने पापा को ये दिखा दिया कि बच्चे जो देखते हैं वही बनते हैं | और ज़िन्दगी भर की सीख के साथ, कुशल की माँ को भी आज़ादी मिल गयी – मेरी माँ आज़ाद हो गयी – हैप्पी इंडिपेंडेंस डे !

 

चित्र स्त्रोत – Huffington Post Canada, IndiaMart, CBS news

 

 

 

 

 

 

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