आज फिर तुमने ब्रेड सैंडविच खाया है ??
मम्मी मैंने मना किया था ना, इसको ब्रेड मत खिलाना, खांसी है इसे | नेहा बैड पर जोर से ऑफिस का बैग पटकते बोली |
अरे बेटा, बहुत जिद्द कर रही थी, ब्रेड सैंडविच ही खाउंगी | इसलिए दे दिया मैंने | सासु माँ ने अपनी अपनी दशा सुनाते हुए कहा |
जिद्द कर रही थी मतलब ? आपको तो पता है ना इन सब चीज़ों से जाह्नवी को कफ हो जाता है | मैं नहीं जाउंगी डॉक्टर से दवाइयाँ लेने फिर |
ये रोज के किस्सों में से एक किस्सा है मेरी दोस्त नेहा का | कहती है मुझे लगा मम्मी आ जाएगी तो थोड़ा आराम मिल जायेगा लेकिन नहीं | मॉर्निंग वाक और इवनिंग वाक दोनों ही उनको प्यारी है | उनसे नहीं संभाली जाती जाह्नवी |
हर 10 दिन में उसकी शिकायतों का घड़ा भर जाता और सब मुझ पर उड़ेल देती और दोस्त होने के नाते मैं सब कुछ सुनती क्योंकि मुझे पता है मन का गुबार निकालना कितना जरूरी है | नहीं तो रिश्ते और बिखर जाते है |
ऐसी एक और दोस्त है जिसको ये शिकायत है कि मम्मी को पता है मैं वर्किंग हूँ और साहिल अभी दो साल का भी नहीं फिर भी सब छोड़ अपनी ऐश की ज़िन्दगी बिताने वापिस होमटाउन चली गयी | ये तो मेरे कुछ जानने वालों की बात हुई लेकिन ऐसी पता नहीं कितनी औरते होंगी जिनको अपनी सास से इस तरह की नाजाने कितनी शिकायत होंगी |
लेकिन वो सब औरते ये क्यों भूल जाती है कि उनकी माँ या सास ने अपने कितने साल अपनी औलाद पर निछावर कर दिए | वो भी थक गयी है, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभायी है | उन्हें भी चैन की सांस चाहिए | एक बार सोचो हम सभी राहत सी महसूस करते है जब हमारा बच्चा 3 या 4 साल का हो जाता है कि अब शायद हमारी ज़िन्दगी वापिस पटरी पर आ जाएगी और ऐसे में दूसरे बच्चे को दुनिया में लाने का ख्याल तक हमें परेशान कर देता है | तो फिर क्या है ये ठीक है कि हम अपनी शरीर से परेशान सास या माँ को दुबारा अपने 20 साल खोने का तोहफा दे |
क्या आप इस बात से सहमत है नहीं कि जब आखिरकार उनका आराम करने का समय आया है, जब उन्हें ये नहीं सोचना कि बच्चे को क्या खिलाना है क्या नहीं, उसे समय से सुलाना उठाना है आप उनसे ये उम्मीद लगाए बैठे है कि वो अपनी कमजोर मानसिक और शारीरिक हालत के साथ दुबारा से बच्चे पालना शुरू हो जाएं |
हां मैं बिलकुल समझती हूँ कि उनका भी बच्चा है, उनकी भी कुछ जिम्मेदारियां है, आपको भी हेल्प और सपोर्ट चाहिए लेकिन प्रॉब्लम वहा आ जाती है जब हम उनसे बच्चे की हर हरकत का ध्यान रखने की उम्मीद लगाए रहते है और जब वो बच्चे को संभालने में आपकी मदद करती है तो उनके प्यार पर शक करते है | अरे जब आप बच्चे को छोड़ कर जा रहे है तो बेफिक्र हो जाएं, उसे खिलाकर ही वो खाएंगी | माँ है वो !
दादा-दादी कहानियों और खूबसूरत एहसासो का भण्डार है | उन्ही से बच्चे पूजा-पाठ, रस्मों-रिवाजों से हमेशा जुड़े रहते है और ऐसे में उनसे डाइपर बदलने और रात में रोटी बनाने की आशा करना ठीक नहीं है | जितनी जल्दी हम हम समझ जाएं कि ग्रैनी नैनी नहीं उतना हमारे लिए अच्छा होगा | एक बार अपने आप को उनकी जगह रख कर सोचे तो पता चल जायेगा कि धूल आइने पर नहीं चहरे पर है और आप आइना साफ़ करने में लगे है |
आप मानेंगे नहीं मैं एक ऐसी दादी को जानती हूँ जो स्वेटर बुनने में माहिर थी और जब सब उन्हें कहने लगे अब तो घर बैठ पोता-पोती की स्वेटर बुनने का टाइम आया है उन्होंने अपना एक हैंडमेड स्वेटर बनाने का बिज़नेस शुरू कर दिया | तकरीबन २०० घर-बैठी औरतों को रोजगार देने के साथ-साथ उनके दिल में कुछ कर-दिखाने की आशा जगाई है | आज उनके बच्चे ही नहीं बल्कि पोता-पोती भी कहते है -मेरी दादी तो बिज़नेस वुमन है “
इस दादी ने दुनिया की सभी दादियों को ये विश्वास दिलाया कि दादी बनना मतलब अपने सपनों को वही मौक़ा देना जो बच्चे पालने में कही खो गया था |
मैंने अपनी सोच आपको बतायी, आप बताये कि आपने अपने बच्चो को कैसे पाला ? आप अपने माँ-बाप या सास-ससुर पर कितना निर्भर है ? आपका क्या अनुभव रहा ?