वर्षा जी का भरा पूरा परिवार था लेकिन फिर भी वो अकेली अपने पति के साथ सहारनपुर रहती थी | बेटा अमेरिका में ही अपने बीवी-बच्चों के साथ खुश था | उनके बेटे केशव ने तो कई बार बोला “इंडिया से बाहर निकलो सब भूल जाओगे” लेकिन अपने घर से लगाव, आस-पड़ोस को छोड़कर किसी पराए देश में जाकर रहना उन्हें कभी गवारा नहीं था | आज वो अपनी बेटी को मिलने या कहुँ लेने देहरादून जा रही थी |
उन्हें बीच वाली सीट मिली | अभी कोई आया नहीं तो वो ट्रैन की खिड़की वाली जगह पर बैठ कर यही सोच रही थी कि बस कोई धमक ना पड़े | तभी ट्रैन रुड़की रुकी और सुनसान पड़े डिब्बे की मानो रुकी हुई साँसे चल पड़ी हो, तीन युवा नौजवान कंधो पर बड़े-बड़े बैग लादे, एक दूसरे से छेड़छाड़ करते, हर बात पर शिट मैन करते हुए वर्षा जी की सीट के सामने जा खड़े हुए |
हे आंटी, दिस इज आवर प्लेस, गेट बैक !
वर्षा जी बुरा सा मुँह बनाये अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी | उनकी फेडेड जीन्स, बिना मोजो के पहने हुए जूते और दोनों लड़को के लम्बे बाल और लड़की परकटी देख साफ-साफ़ जाहिर हो रहा था कि ये विदेशी पर्यटक बनने की चाह में देसी थे |
पहले से बैठा भारतीय यात्री और वो भी महिला यात्री खाली बैठा क्या करें, हर चढ़ने वाले की वेशभूषा, बातचीत के तरीके और शक्ल देख उनके प्रदेश-परिवेश भांपने लगता हैं ! अजीब शौक हैं ना लेकिन सच मानिये सव्भाविक हैं | ये तीनो ही यात्री गोवा के लग रहे थे | ऐसा लगा टेण्टिंग और राफ्टिग करने ऋषिकेश की ओर जा रहे थे | सिर्फ टी-शर्ट, जीन्स ओर गले में पहने काले धागे पर क्रॉस का लॉकेट पहने होने की वजह से ही वर्षा जी ने इसका अनुमान नहीं लगाया | बल्कि वो इंग्लिश में ओर बीच -बीच में कोंकणी भाषा में भी बात कर रहे थे |
एक के हाथ में गिटार था, जो उसने आते ही बजाना शुरू कर दिया ओर वो लड़की उस गिटार वाले डूड को देख मुस्कुरा रही थी मानो दोनों के बीच कुछ तो गड़बड़ थी | ओर वो दूसरा छुटकू लड़का कान में वॉकमेन की तार घुसाए और वॉकमेन को अपने बरमूडा में डाल गाने के बोलों के साथ लिप्सिंग मैच कर रहा था |
बीच में उसकी भावनाएं गाने के शब्दों के साथ विचलित हो जाती और उसका स्वर तेज हो जाता | गाने का वॉल्यूम इतना ज्यादा था कि वर्षा जी को साफ़-साफ़ सुनाई दे रहा था और वो चिढ़ रही थी |
थोड़ी देर तो बर्दाश्त किया फिर उन्होंने झंझलाहट में कहा -हेल्लो, सो लाउड साउंड? नॉट गुड फॉर इयर्स !
लड़के ने कान में से वायर निकाल बोला- डिड यू से समथिंग आंटी ?
आयी साइड.. इफ यू विल हिअर सो लाउड म्यूज़िक, योर इयर्स विल बी डैमेज़्ड !
लड़के ने लड़की को कहा – व्हाई डीज़ ओल्डीज ऑलवेज पोक देअर नोज़ !
लड़की ने गुस्से में लड़के को कहा – शट अप, आंटी इज़ राइट !
वर्षा जी सोचने लगी देखे तो कैसे बेहूदा जनरेशन हैं आजकल की, भद्दे कपड़े, भद्दी जबान, और सबकुछ भद्दा | वर्षा जी ने सोचा थोड़ा मुँह हाथ ही धो लेती हूँ अगले स्टेशन हरिद्वार से ही मिठाई ले लूंगी, वहा देहरादून में दामाद जी के सामने लेते हुए अच्छी लगूंगी क्या ? वर्षा जी के पास सिर्फ एक बड़ा हैंड बैग था जिसे लेकर वो नीचे उतर गयी |
हरिदवार ट्रैन 10 मिनट रूकती हैं, फटाफट ले लूंगी मिठाई ” अभी वो दुकानदार से हिसाब-किताब ही कर रही थी कि ट्रैन चल पड़ी | उन्होंने बाकी बचे पैसे छोड़े और ट्रैन को पकड़ने के लिए दौड़ी |
हाउ आर यू नाउ आंटी ? वर्षा जी ने आँख खोली तो डॉक्टर और उन तीनो युवा के बीच घिरी थी | जब हल्का हिली तो घुटनों में दर्द था, हाथ में खरोंचे और माथे पर भी चोट लगी थी |
हे आंटी, व्हाई वर यू रनिंग? नो वन केम फॉर हेल्प, दे वर वाचिंग ऐज़ इफ सम शो इज़ गोइंग ऑन ! वी कुड नॉट गो लीविंग यू लाइक डिस | आंटी मैं रोज, मेरा भाई अल्बर्ट और ये मेरा मंगेतर एंड्रू जिसने आपको गिरा देख चैन खींचा -लड़की ने सबका परिचय दिया | हमारा मम्मी बोला – कोई पैन में हैं तो हेल्प करने का | डिस ईस मोर डैन प्रयिंग “
वर्षा जी को अपनी सोच पर पछतावा होने लगा कि कि दूर से दिखने वाली चीज़े जरूरी नहीं सच हो | और किसी की वेशभूषा या हाव-भाव से आप उसकी जीवन कुंडली नहीं निकाल सकते | आज की ज़िन्दगी में बच्चों को थोड़ी आजादी देनी भी जरूरी हैं | उन्हें ये भी लगने लगा कि कही उनकी अपने बच्चों पर जरुरत से ज्यादा सख्ती ही तो कारण नहीं कि आज उनकी बेटी अकेले सहारनपुर तक नहीं आ सकती |
मेडोना सुन रहा है क्या? मुझे भी दिखा – वर्षा जी ने अलबर्ट के कान से एक हैडफ़ोन निकाल अपने कान में डाल लिया और खिड़की वाली सीट की और खिसक गयी |एक बार फिर शुरू हुआ सफर ओल्ड और हिप-हॉप जनरेशन का |
चित्र स्त्रोत- Halla.in,Indian express,pixabay,New Indian express,coffee house the spectator