वैसे तो बात बहुत ही मज़ाकिया तरीके से कही गयी थी लेकिन रजनी के मन में जैसे उसे सुन हज़ारो तीलियों के बिना आग सी लग गयी थी |
अपने घर को संभालती औरत चाहे पूरी ज़िन्दगी भी दे दे तो उसका कोई श्रेय नहीं लेकिन घर के बाहर एक-आधा अवार्ड मिल जाएं तो उसका गुणगान करते नहीं थकते लोग |
आज रजनी का बड़ा बेटा आर्यन जो की मुंबई की मल्टी-नेशनल कंपनी में काम करता था, घर आ रहा था | दिल्ली में कोई मीटिंग थी तो सोचा माँ को भी मिलता चलू ! और आज सुबह से ही रजनी एक टांग पर खड़ी कभी आर्यन के फेवरेट राजमा चावल बनाती तो दूसरी ओर हलवे के लिए सामान बटोरती | आज मानो घुटनो का दर्द भी जैसे रूठे हुए बच्चे की तरह मान गया था क्योंकि आज उसका आर्यन आ रहा था | आर्यन इतने बड़े औदे पर था कि उसका एक पैर हमेशा मीटिंग के सिलसिले में फ्लाइट में ही रहता | छोटा बेटा अपनी पत्नी के साथ रजनी और उसके पति के साथ एक साथ दिल्ली में रहते थे |
माँ, शाम की फ्लाइट है वापसी की | इतना टाइम नहीं है मेरे पास !
तू आता बाद में जाने की जल्दी पहले रहती हैं !
माँ तुम्हे क्या पता ऑफिस में कितनी खून चूसते हैं | तुम्हे तो सब आलू-मूली लेने जैसा लगता हैं |
अरे छोड़ ना भाई, माँ को क्या पता | पूरी ज़िन्दगी गुजर गयी घर में आराम से एक हाउसवाइफ बन के रहने में | नो टेंशन ओनली पेंशन | और दोनों बेटे खिलखिलाकर हॅसने लगे |
रजनी ने छोटा सा मुँह बनाकर एक अधूरी सी मुस्कान दी |
आर्यन के सामने तो रजनी ने कुछ नहीं कहा पर उसके जाते ही रजनी ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और अपनी अलमारी की नीचे वाली दराज में दबी अपनी डिग्रियों को निकाला | और जोर-जोर से रोने लगी | उसे लगा जैसे वो ढेरो इनामी प्रमाण पात्र,वो किसी जमाने के सबसे कीमती कागज़ के टुकड़े भी उसे मुँह चिढ़ा कर उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं | वो और जोर से रोने लगी और सोचने लगी अपनी खाल की जूती बनाकर भी इन्हे पहना दो तभी भी बोलेंगे किनारे से थोड़ी चुभ रही हैं | तभी एक मोटा सा आंसू उसके सर्टिफिकेट पर लिखे उसके नाम पर गिरा – रजनी कथूरिया |
कौन हैं ये रजनी ? जाहिल, गवाँर, एक हाउसवाइफ या एक पढ़ी लिखी इंडिपेंडेंट वुमन जिसके लेख हर रोज बड़ी मैगज़ीन में छपते थे |जब आर्यन हुआ तो रजनी या उसके पति में से किसी एक को तो बच्चे और गृहस्ती को देखना था | तो रजनी को एक साल की छुट्टी लेनी पड़ी | फिर छोटा बेटा हो गया तो वो एक साल कई सालों में बदल गया |
घंटो रोने के बाद जब रजनी कमरे से बाहर आयी तो छोटे बेटे नीलेश ने रजनी की सूजी आँखों को देख सब भांप लिया कि आज शायद माँ ने ये बात मज़ाक में नहीं ली | सॉरी माँ, हम मज़ाक कर रहे थे | हमारा वो मतलब नहीं था | रजनी ने नीलेश के सर पर हाथ रख कहा पापा मौसमी लाये थे जूस पियेगा ?
खाना खाने के बाद जब रजनी पलंग पर लेटी तो फिर उसके दिमाग में वही बातें घूमने लगी – बेटा अगर मैं आलू-मूली का भाव ना देखती तो आज तुम दोनों जिन उचाईयों पर हो वहां तुम्हारी नज़र तक नहीं पहुंच सकती |
उसने तभी एक नंबर मिलाया –
हेलो निधि, दिस इज़ रजनी !
हाय रजनी… हाउ आर यू ? आफ्टर सो लॉन्ग टाइम…
येस… वाज़ सुपर बिजी इन लुकिंग आफ्टर दा हाउस ! नाउ एवरीथिंग इज़ सेटल्ड | इस देयर ऐनी स्कोप फॉर मी तो कम बैक इन दा इंडस्ट्री ?
यस देयर इज़.. देयर इज़.. कल १२ बजे कार भेजती हूँ |
निधि अब ग्रूमिंगइंडिया मैगज़ीन की चीफ एडिटर बन गयी थी जिससे रजनी ने अपना करियर स्टार्ट किया था |
अगले दिन शनिवार था तो सब नाश्ते की टेबल पर एक साथ बैठे थे तभी रजनी ने दोबारा जॉब ज्वाइन करने की खबर दी |
क्या मम्मी आप तो इतनी सी बात पर सीरियस हो गए | आप तो जानती हैं हम दोनों वर्किंग हैं और हम सोच रहे कि फॅमिली स्टार्ट करें |
बहुत अच्छी खबर हैं, फुल टाइम मेड रख लेना और नहीं गुजारा हुआ तो शालिनी ब्रेक ले लेगी जॉब से | मैंने भी लिया था | और मुस्कुराती हुई रजनी घर से बाहर निकल गयी |
पापा देखो ना, मम्मी को क्या हो गया हैं ?
बेटा मम्मी ने अपना घरोंदा बसाने के लिए उड़ना छोड़ दिया था | आज उसके परों में फिर से जान आ गयी हैं… अब भर लेने दे उसे एक उच्ची उड़ान !
चित्र स्त्रोत Coloring page index, pixabay, artponnada.blogpost.com.