रीढ़ की हड्डी में फर्क

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पीठ में हुआ जब तेज दर्द
डॉक्टर से पूछा क्या है मर्ज


डॉक्टर ने कहा अब और क्या दूँ तर्क
झुकते-झुकते रीढ़ की हड्डी में आ गया है फर्क


अब और झुकने की गुंजाइश नहीं रही
बात बिल्कुल न समझ आयी जो डॉक्टर ने कही

सुनते ही हंसी और रोना साथ आया
क्योंकि “मत झुकना” शब्द पहली बार सुनने को पाया

बचपन से तो हर इंसान से सुना मैंने “लड़की हो झुकी रहना”
और साथ में ये भी सुना “बोलना कम ज्यादा सहना”

औरत के झुके रहने से ही तो है उसकी हस्ती
उसके झुके रहने से ही तो बनती है गृहस्थी

औरत को ही तो करना है हर घरेलु प्रबंध
उसके झुके रहने से ही तो बने रहते है संबंध

नारी ही तो सहती है दुःख हर बार
उसके झुके रहने से बना रहता है प्यार..घर..परिवार..

झुकती गयी, झुकी रही, झुकते रही, भूल ही गयी रीढ़ की हड्डी होती है उसकी
आज कहते सुना “झुकना मत” न जाने डॉक्टर बात कर रहा है किसकी

क्या सच में ज्यादा झुकने से रीढ़ की हड्डी अपनी जगह से खिसक जाती है?
क्या ये परेशानी हर औरत को आती है जो कहीं खालीपन लाती है?

अब तो सोचना बनता है कि बचपन से क्या-क्या खिसक गया
उसके अस्तित्व में, उसके मन में कहाँ कहाँ खालीपन आ गया

कई बार अपने सपनों का गला घोट दिया, अपने बच्चों और घर का सोचते-सोचते
अंदर से कितनी खाली हो गयी, अपने मन और चाहतों को नोचतें-नोचतें

पहले वाली वो बेफिक्र “लड़की” आज एक सिर्फ दूसरों के बारें में सोचने वाली “औरत” बन गयी
सचमुच काफी अंतर आ गया, उसकी सभी इच्छाएं अनिच्छायों में जो बदल गयी |

लेकिन अब सोच में फर्क लाना होगा, अपनी कमजोरियों को जरा खिसकाना होगा
हर बात पर झुकना छोड़, थोड़ा स्वार्थ भी लाना होगा |

घर को घर बनाने वाली सभी औरतों को समर्पित

1 thought on “रीढ़ की हड्डी में फर्क

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