निशा ने अपनी भाभी कुसुम को फ़ोन कर बोला- भाभी, राखी भेज रही हूँ, अगर ना पहुंचे तो बता देना, मैं खुद आ जाउंगी |
कुसुम बोली – ठीक दीदी |
दो दिन बाद कुसुम ने निशा को फ़ोन किया -हां दीदी, ये बताने के लिए फ़ोन किया कि राखी मिल गयी है |
निशा ने कहा -ठीक है भाभी |
फ़ोन रखते ही निशा जोर-जोर से रोने लगी और सोचने लगी…..
जब मैंने अभी राखी भेजी ही नहीं तो भाभी को मिल कैसे गयी ? राखी तो वो 2 दिन पहले ले आयी थी लेकिन भेजने का टाइम ना मिल पाया | और भाभी की ये बात सुनकर उसका दिल बैठ गया |
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग है जो अपनी सहूलियत के हिसाब से बातें तोड़-मरोड़ लेते हैं | शायद कभी ना कभी हम सब उन्ही लोगो का हिस्सा बन जाते हैं | हमें जचे तो ठीक नहीं तो ग़लत | नहीं समझे ?? चलिए आपको ऐसी कई स्तिथियों से रुबरु कराती हूँ –
कोई बीमार को देखने आये तो कहते है “क्यों तकलीफ की, हॉस्पिटल में मिलने भी नहीं देते !
अगर ना देखने जाओ तो कहते है “कमाल है, देखने तक नहीं आयी” |
बेटी को सुबह दामाद चाय बनाके दे तो माँ बोलती है – बेटी बड़ी खुश है, दामाद जी चाय बनाके पिलाते है |
बेटा अगर बहु को चाय बनाके पिलाये तो वही माँ बोलती है – जोरू का गुलाम, लड़को को घर के काम शोभा देते है भला !
बेटी को कोई तकलीफ हो तो माँ कहती है -बड़ी दुखी है बेचारी !
बहु को कोई तकलीफ हो तो वही कहती है – क्या दुख है इसे, सर आँखों पर बिठा के रखा है |
अगर बेटी आ रही हो तो माँ कहती है -जा, बहिन को लेके आ !
अगर नन्द आ रही हो तो पति को बोलती है -इतने साल हो गए !समझ नहीं आता घर का रास्ता नहीं पता क्या ?
जब नन्द घर आ रही हो तो “अब इनके लिए पैसों के लिफ़ाफ़े बनाओ.. उफ़ !
नन्द के सामने – अरे रख लें, ये तो हर बेटी का हक़ हैं |
बेटी जब अपने सास से जुड़ी परेशानी गिनवाती है तो माँ कहती है “सास कभी माँ नहीं बन सकती “
अपनी उसी बेटी को बहु के बारे में बोलते हुए “एक माँ से भी ज्यादा प्यार दिया है इसे मैंने |”
एक दिन बोलते है “वो लोग मुझे बिलकुल पसंद नहीं “
दूजे दिन उन्ही लोगो के साथ घूमते नज़र आते है |
कोई घर में फल लेके आया – इसकी क्या जरूरत थी, खाली हाथ नहीं आना होता क्या ?
कोई घर कुछ नहीं लाया -बस आ गया खाली हाथ खड़खड़ाते, ये नहीं कुछ फल ले आते |
कई बार सोचती हूँ ये दुनिया सामने से कुछ और हैं और पीछे से कुछ | बड़ी परेशान हो जाती हूँ किस पर विश्वास करुँ किस पर नहीं | फिर सोचती हूँ ऊपर लिखें संवाद में से कई बार मैंने भी जाने-अनजाने कुछ बोल लिए होंगे अपनी सहजता के अनुसार | क्या आपको भी लगता हैं कि हर इंसान अभी सुविधाअनुसार बातें बदलता हैं ?
चित्र स्त्रोत -Openclipart, Razzable,traslamascara