आज महिला दिवस पर कुछ बोलने का मैं भी क्यों न अवसर लूँ,
सोचा क्यों न हर घर में रहती उस नारी से आपको फिर से रूबरू कर दूँ |
शक्कर सी मीठी है, मिर्ची सी तीखी है,
एक औरत सिर्फ तक तब बेचारी है जब तक उसकी नेल पोलिश न सूखी है |
दो घंटे दुकान में खड़े होने के बाद कहती है “भैया अभी तो बस देखने आये थे”
मैंने तो शार्ट में बात की का मतलब है – पूरे २ घंटे लगाए थे |
भगवान ने इसे फुर्सत से बनाया लेकिन एक मिनट की भी फर्सत न दे पाया है,
डिनर में आज मैं कुछ नहीं बनाउंगी “सुबह तो कितना भारी खाया है|”
10 रुपये की 5 गोलगप्पे की प्लेट लेकर 3 खट्टे वाले 2 मीठे वाले, 2 सूखी पापड़ी और एक्स्ट्रा पानी भी मांग लेती है,
घमासान बहस के बाद ओके या ठीक है का मतलब “इस बात की सजा मिलेगी, बराबर मिलेगी” ये मन में ठान लेती है |
ख़ुशी की बचे न कोई गुंजाइश, सारे ग्रहों को शनि कर देती है,
अच्छी है तो बहुत अच्छी है वर्ना बड़े-बड़ों को भीगी बिल्ली कर देती है |
जब वो बोले क्या??? इस शब्द में आने वाले तूफ़ान का अंदेशा देती है,
इसका मतलब ये नहीं कि उसने सुना नहीं पर आपको अपनी बात बदलने का मौका देती है |
“मेरे पास एक भी अच्छा कपड़ा नहीं” – शादी के कार्ड को देखकर ही जो बोले,
याद है न पार्वती की जिद्द के आगे कुछ न बोल पाए थे बम-बम भोले |
“आज मैं बहुत थक गयी” इन चार शब्दों को पूरी सृष्टि कब से सुने जा रही है,
“खाने में क्या बनाऊ” ये सवाल तो आज भी हर घर पर भारी है |
चाहे कमियां है उसमे पर फिर भी उसके बिना हर इंसान की ज़िन्दगी अधूरी है,
वो माँ है, पत्नी है, है बेटी और बहन भी है, क्योंकि हर कमी उससे ही पूरी है |