बारिश तेज और बादल जोर-जोर से गड़गड़ा रहा था
उस दिन मैं घर को लौट कर आ रहा था
अचानक मेरी नज़र एक अधमरी चीज़ पर पड़ी
कमर टूटी थी उसकी, हाथ में थी कंपकपाती छड़ी
मैंने पूछा कौन हो जिस हाल में हो
कदम ठीक नहीं पड़ते तुम्हारे, कितनी बेचारी चाल में हो
शक्ल-सूरत से तो लगती हो अच्छे घर की
किसने छीना श्रृंगार तुम्हारा, कहाँ गयी चुनरी तुम्हारी सर की
करहाती हुई आवाज़ आयी – मैं हिंदी हूँ मेरे भाई
तुम सभी लोगों ने ही तो मेरी आवाज है दबाई
मैंने कहा -ऐसा हमने तुम्हारे साथ क्या कर दिया
जो इतना बड़ा इलज़ाम तुम्हारे हर सर मढ़ दिया
देख तेरी वजह से ही तो मैं अन्धकार में हूँ डूबी
तेरे हिसाब से मुझमे नहीं रही कोई खूबी
मेरे साथ तू शर्मिंदा होता, ना भूलूंगी इस तिरस्कार को
आज पूछता है कैसे कमर टूटी मेरी, क्या भूल गया उस मार को
मेरे पीछे सब मुझे गवाँर कहते है
बड़े तो बड़े, बच्चे भी मुझसे मुँह फेरे रहते हैं
लोगों के ज्ञान को अब इंग्लिश से परखा जाता
हिंदी की क्या औकात, उसे न कुछ आता, न कुछ जाता
अच्छी इंग्लिश सुनकर तू भी तो घबरा जाता है
टूटी-फूटी से काम चलाता पर मेरे पास न आता है
हिंदी में तो तूने अपना हर सपना देखा
मत भूल तेरे हाथ में है उज्जवल भारत की रेखा
इंग्लिश न आने पर क्यों तेरी गर्दन झुक जाती है
कह सीना ठोक के, हिंदी मुझे आती है
मैं समझती हूँ इंग्लिश को साथ रखना होगा तुझे
पर क्यों ऐसी हालत कर घर से निकाला मुझे
जैसे संस्कृत हुई अनाथ, मैं भी लावारिस हो जाऊं न रे
अपनी मातृभाषा का सम्मान कर, मैं तुझसे बस इतना चाहूँ रे
ओ हिंदी तेरी बातें सुनकर मैं शर्म से हुआ पानी
कान पकड़े सौं बार मैंने, अपनी हर गलती मानी
चल अपने घर चल, मुझे माफ़ कर ऐ हिंदी
भारत के सुने हुए माथ पर लगा दे फिर से अपनी ये बिंदी