फिर से मम्मी घर ?

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सुमन अपना सारा काम खत्म बस एक मौके की तलाश में थी कि कब वो अपने पति ऋषभ से बात कर पाए | ऋषभ को रिलैक्स करता देख सुमन फट से उसके पास जाकर बैठ गयी |

सुमन (थोड़ा सी झिझक के साथ) – मुझे आपसे कुछ बात करनी हैं |

ऋषभ (अपने फ़ोन की स्क्रीन पर आँखे गड़ाए) – हां बोलो

सुमन (झिझक, मना हो जाने का डर के साथ )- इस महीने की 20 तारीक को लॉन्ग वीकेंड हैं, अगर कुछ जरूरी नहीं करना तो बच्चों के साथ मम्मी घर चली जाऊ ?

ऋषभ – (आश्चर्य से फ़ोन को दूर रखता हुआ )- क्यों ? क्या हो गया ? सब ठीक हैं ? अभी 3 महीने पहले ही तो गयी थी |

सुमन (बिलकुल उदास सा मुँह बनाएं ये सोच कि कही ना शब्द ना सुनना पड़े )- पर 3 महीने कितना ज्यादा टाइम होता हैं | मम्मी भी बच्चों को बहुत याद कर रही हैं और ऊपर से सूरत वाली बुआ भी आ रही हैं |

ऋषभ – लेकिन…

सुमन (जैसे बस रो ही पड़ेगी ) प्लीज

ऋषभ – ओके जाओ |

और सुमन की जैसे ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था, ख़ुशी के मारे पेट में गुड़गुड़ भी शुरू हो गयी |

और ऋषभ बस सोचता रह गया आखिरकार हर बार मम्मी के घर जाने की बात पर इतना ज़ोर क्यों डालती हैं ?

ये एक ऐसा मुद्दा हैं जिस पर शायद हर भारतीय परिवार में विचार-विमर्श होता हैं | चाहे कोई हाउसवाइफ हो या वर्किंग, चाहे निडर हो या सहमी, अपने घर जाने का सही कारण दे या फिर हज़ारो झूठे कारण बनाएं, मम्मी का घर पास हो या दूर, हर एक औरत की अपने मायके जाने के नाम से ही आँखे टिमटिमा उठती हैं | और पति और बाकी परिवार वाले बस यही सोचते रह जाते “फिर से मम्मी घर “? तो आज मुझे उन सबको बताने दें कि क्यों जाना हैं हमे मायके ?

एक औरत को अपने मायके इसलिए जाना होता हैं क्योंकि वही वो जगह हैं जहा वो पैदा हुई, उसने चलना सीखा, उसने बोलना सीखा, दुनिया देखी और बिना किसी शर्त के प्यार पाया | वो उसकी आत्मा का ऐसा हिस्सा हैं | वो आज जो हैं सिर्फ उसी की वजह से हैं |

अपने मायके में वो सारी-सारी रात अपने माँ-बाप, भाई बहिन से बात कर सकती हैं और सुबह जल्दी उठने की कोई जरूरत नहीं |

आँख खुलने से पहले उसके सामने माँ चाय का कप ले आती है और पूरे एक घंटे तक वो रजाई में बैठ कर चाय पीने का मज़ा ले सकती है | साथ में माँ कहती है खाली पेट चाय मत पी, ले बिस्किट लें ! वो सुबह अखबार पढ़ सकती है और शाम को अपना फेवरेट टीवी सीरियल देख सकती हैं |

तब तक बच्चे नानू और नानी के साथ एन्जॉय करते हैं | वो वापिस उन्ही गलियों में घूम सकती हैं जहा वो पली बड़ी हुई, अपने दोस्तों से गपशप लड़ा सकती हैं बेफिक्र और बिंदास !

उसे ये नहीं सोचना की रात क्या सब्जी बनानी हैं | उसे ये भी नहीं देखना कि कौन सी दाल खत्म हैं तो कौन सी सब्जी | कोई फर्क नहीं पड़ता अगर बच्चे नहीं पढ़ रहे या घर को गन्दा कर रहे हैं | सुबह वो 9 बजे तक सो सकती हैं क्योंकि दूधवाले और कूड़े वाले के लिए दरवाजा नहीं खोलना |

वो मायके जाती हैं अपने पापा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट देखने जब वो अपनी बेटी को सामने देखते हैं |

वो जाती हैं अपनी माँ की आँखों में ख़ुशी के आंसू देखने जब वो उनसे जाकर गले लगती हैं | वो जाती हैं अपने भाई से ये सुनने ” मोटी, क्या हाल हैं तेरे ? एक नया मॉल खुला हैं यहाँ, सब तैयार हो जाना, शाम को चलेंगे |

हां, मामी,मासी,बुआ उन सबको तो एक फ़ोन कॉल करने की देरी होती हैं और लो हो गयी रात भर खत्म ना होने वाली महफ़िल शुरू | वो मायके जाती हैं प्यार, एनर्जी और सकारात्मकता का कोटा पूरा करने ताकि वो अगले चक्कर (मुलाक़ात ) तक चल जाएं |

वो जाती हैं ऐसे कई अनगिनत कारणों की वजह से जो पति शायद कम समझ सकते हैं क्योकि वो अपने घर में ही रहते हैं – अपने मायके में !

क्या आपके साथ भी ऐसा होता हैं जब अपने घर जाने के लिए, अपनों से मिलने के लिए कारण देने पड़ते हैं | अपना अनुभव शेयर करें |

 

चित्र स्त्रोत -Daily motion, newyork post, hotstar, today, shaadi grapher, firefly daily, daily mail

 

3 thoughts on “फिर से मम्मी घर ?

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